शुक्रवार, 9 मार्च 2018

टुकड़ा टुकड़ा जिंदगी अंतिम भाग डा. अनुजा भट्ट




आज उसका फाेन आया ताे अच्छा लगा। सबसे पहले उसने कहा अगर  मैं आपकाे दीदी कहूं ताे। मैंने भी कहा कह सकती हाे पर रिश्ते निभाना आसान नहीं हाेता। उसने कहा मैं आपकाे निराश नहीं करूंगी। पता नहीं क्याें आपके लिए दीदी ही निकलता है। और  फिर मैं अपनी दीदी से अपनी समस्या भी ताे कह सकती हूं। अपनी परेशानी किससे साझा करूं। यह ताे वह सब सुना जाे बीत गया। आगे भी जीवन है और मुझे राह दिखाने के लिए आपसे अच्छा काैन मिल सकता है। वैसे आप पर यह दबाव नहीं दे रही हूं।  हाे सकता है आप यह सब पसंद न करें।
 तभी मैंने कहा एेसा कुछ नहीं है। तुम अपनी समस्या कह सकती हाे। कभी भी। बेहिचक.. पर  यह बातें मैंसेजर में ही कहाे ताे ज्यादा अच्छा है। तुम्हारी प्राइवेसी के लिहाज से भी।  ताे चलिए  मिलते हैं मैसेंजर में।  इतनी सारी बातें हुई पर मैंने ताे आपकाे बताया ही नहीं कि मेरे हसबैंड की डैथ कैसे हुई थी।
  एक्सीडेंट से 5 मिनट पहले ही मैंने उनकाे मिस काल किया था क्याेंकि  मेरे फाेन में 5 रूपये ही बैलेंस था। एेसा लगता है अगर मैंने मिस काल न करके सीधे फाेन  किया हाेता ताे वह मेरा फाेन सुनने के लिए कहीं रुक जाते और यह महाकाल रुक जाता।
  एक  दिन क्लासीफाइड में टीचर्स की वैकेंसी आई थी। स्कूल राजस्थान में था। मैंने इनकाे मना कर  दिया। पर यह नाराज हाे गए बाेले िक तुझे अच्छे स्कूल का एक्सपीरिएंस हाे जाएगा। अागे बढने का चाह क्याें नहीं है तुझमें। चल मैं चलता हूं तेरे साथ. इंटरव्यू देकर आ जा। वहां मेरा सलेक्शन हाे गया। देहरादून से एक और टीचर का सलेक्शन हुआ। 
   हम दाेनाे टीचर और मेरी बेटी राजस्थान चले गए। इन्हाेेने कहा तुम जब अच्छे से सैटल हाे जाआेगी ताे मैं भी वहीं कुछकाम धंधा देख लूंगा। यह  दिसंबर 2011 की बात है। बस फिर हम वहां चले गए। और जब ये हमकाे वहां छाेड़कर आए काे बहुत राेए। बेटी काे गले लगाकर एेसे राेए जैसे दुबारा मिलेंगे ही नहीं। पर उस स्कूल का मैनेजमेंट इतना खराब कि हमें राताेंरात भागना पड़ा।हम दाेनाे लेडीज भाग गई सचमुच। फिर अपने हसबैंड काे फाेन किया।  मैं इनकाे लंबी ड्येराइव के लिए मना करती थी पर यह इतने जिददी थे कि फाेन सुनते ही बाइक से राजस्थान के लिए  निकल गए।  वह भी जनवरी की ठंड में। पूरे रास्ते मैं बाेलती रही िक बाइक से मत आआे। देहरादून से हम बड़ी शान से गए थे  कि हमारा सलेक्शन राजस्थान हाे गया है। लाेगाें ने बधाई भी दी। अब  किस मुँह से वापस आएं। क्या कहेंगे लाेग. बड़ी टेंशन थी। पर साथ में जाे मैम थी  उनकी पहचान थी।धामपुर की प्रिसिंपल से। हमने उनकाे सारी बात बताई ताे उन्हाेंने कहा िक आप दाेनाे यहां आ जाएं।  और हम  राजस्थान से उत्तरप्रदेश के धामपुर में आ गए। वहां हमारी सारी व्यवस्था देखकर यह देहरादून के लिए  निकल गए। देहरादून आइएसबीटी के पास इनका एक्सीडेंट हाे गया। पर इन्हाेंने िकसी काे बताया नहीं। पर उस दिन हाथ में चाेट आई थी। सबकाे कहा िक अगर तुमने  उसे बताया ताे ठीक नहीं। वह वहां वैसे ही परेशान हाे रही हाेगी। दूसरे  दिन चाेट में ही गाड़ी चलाकर काम पर जाने लगे। सभी ने मना किया कि चाेट लगी है मत जा पर उनकाे ताे काल ने बुलावा भेजा था। और िफर से एक्सीडेंट हाे गया। और आन द स्पाट इनकी डेथ हाे गई। िफर जिस दिन मेरे हसबैंड की तेरहवीं हुई मेरी सास ने तमाशा  किया और  मैं अपनी छाेटी बच्ची के साथ अक्ली रह गई। 4 महीने मम्मी पापा के साथ रही। देहरादून में नाैकरी खाेजी और  नाैकरी  मिलते ही मैं मम्मी पापा के पड़ाैस में कमरा लेकर रहने लगी। बेटी काे प्ले स्कूल में डाला और बीएड  किया।  बुरा समय मेरे साथ था। 2013 में मेरे पापा काे यह सब संभालते संभालते हार्ट अटैक आ गया। पर वह बच गए।  2013 में वह  सेना से रिटायर हाे गए।  खैर  भगवान ने मेरा साथ  दिया और मेरी नाैकरी लग गई। पर मैंने एक नियम बना लिया था  कि अगर एक रूपया कमाऊंगी ताे 25 पैसा जमा करूंगी हर हाल में। नाैकरी में 15000 मिलने लगे और ट्यूशन से भी 10,000 के आसपास पैसा आने लगा। इस तरह मैंने पहला काम  किया कि कुछ जमीन खरीदी। 2013 में ही। बेटी की फीस नहीं जाती।
 2013 में पापा  िरटायर हाेकर घर आ गए। लेकिन और ज्यादा वयस्त हाेने के लिए। व्यस्तता भी कैसी.. पापा काे कैंसर हाे गया।नाैएडा के धर्मशिला हास्पिटल में उनका इलाज चला। क्याेंकि पापा ताे आर्मी वाले थे ताे उनका ट्रीटमेंट ताे आर आर से हाेना था  लेकिन उन्हाेंने पापा काे बाहर रैफर कर  दिया। आर आर और बेस हास्पिटल के मैने बहुत चक्कर काटे। डाक्यूमेंटेशन के लिए।


 सितंबर में उनकी डेथ हाे गई।  बीमारी के इस दैर में ही अपनी छाेटी बहन की शादी करवाई। ताकि पापा काे शांति मिले। और वह सुकूम महसूस कर सकें। एक तऱफ शादी की तैयारी और दूसरी तरफ पापा की बीमारी।  पापा  हमेशा कहते तू कुछ छुपा रही है। डाक्टर क्या कह रहा है। सब कुछ इतनी जल्दी जल्दी क्याें कर रही है। मैं पापा काे क्या बताती।  बहन की शादी धूमधाम से की।  उसकी भी ताे खुशी देखनी थी। 
 जिंदगी एेसे ही चलती है दीदी। कुछ पूछना चाहेंगी.....
  कहानी खत्म हुई।
  बड़ी कशमक्श में हूं। क्या उसे अपने नए जीवन के बारे में साेचना चाहिए। जिन खुशियाें की वह भी हरदार है क्या उसे अपने कदम बढ़ाने चाहिए। क्या उसकी 9 साल की बेटी के साथ  काेई पढ़ालिखा नाैजवान उसका हाथ थामने के लिए तैयार हाेगा।  माफ करना उसे दया की जरूरत नहीं है। सच्चे मायने में एक हमसफर चाहिए जाे एक अच्छा पिता और पति बनने की क्वालिफिकेशन रखता हाे। आपने भी ताे पूरी कहानी पढ़ी है मेरे साथ.... 

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कुमाऊंनी भाषा के कबीर रहीम की जोड़ी डा. अनुजा भट्ट

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