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गुरुवार, 30 अगस्त 2012
मोनोक्रॉम दुल्हन के नए अंदाज-डॉ. अनुजा भट्ट
बात सीधे शुरू करें। मानोक्राम यानी ब्लैक, वाइट, ग्रे, नेवी ब्लू जैसे डार्क व सॉलिड कलर्स। आज की दुल्हन के लिए यही कलर्स ट्रेंड में हैं। डिजाइनर वरुण बहल अपने क्लेक्शन नोविया में डार्क कलर्स में ब्राइडल वियर लेकर आए हैंं। इनमें ब्लैक, डार्क ग्रीन, ग्रे, ब्राउन जैसे कलर्स में साड़ी, लहंगा विद वेलवेट कोट, लॉन्ग अनारकली विद वन साइडेड लॉन्ग जैकेट, फ्रंट ओपन सूट के साथ प्लाजो पैंट्स वगैरह हैं। फेमिनिन अपील के लिए नेट को भी खूबसूरती से यूज किया गया है।
अल्टिमेट इंडियन ब्राइडल कलर माने जाने वाले रेड के भी कई डिजाइन हैं । इनके साथ चौड़ी एम्ब्रॉयडरी, पैच वर्क, क्रोशिया वर्क वगैरह को ब्लेंड किया गया है। ट्रडिशनल लुक और मॉडर्न फैशन का कॉम्बिनेशन जेजे वलाया ने भी यूज किया। उनकी डेसेज में डिजिटल प्रिंट्स और ऑटोमन एम्पायर की झलक है। वैसे, ब्राइडल वियर में लेदर व वुड का यूज करके उन्होंने एकदम डिफरेंट ड्रेसेज बनाई हैं। इस कलेक्शन में आइवरी शेड्स व वाइब्रेंट कलर्स के साथ रॉयल अपील है, जिसे पाइन सिल्क, वेलवेट, जरदोजी, सिल्क जैसे फैब्रिक्स के साथ बनाया गया है।
लेकिन ब्राइडल वियर में लेटेस्ट टशन है मोनोक्रॉमेटिक फैशन का। बेशक इसे पहले कैजुअल्स में आजमाया गया है। ब्लैक, वाइट व ग्रे जैसे कलर्स भी ब्राइडल वियर में शामिल हो चुके हैं। हालांकि दुलहन के अंदाज निखारने के लिए इनमें थोड़ा-बहुत दूसरे कलर्स के साथ भी एक्सपेरिमेंट करने की गुंजाइश रखी गई है।
अब मोनोक्रॉम ट्रेंड ब्राइडल वियर में छा रहा है, जिसमें ब्लैक, वाइट, ग्रे, नेवी ब्लू जैसे डार्क व सॉलिड कलर्स से एक्सपेरिमेंट करने का पूरा स्कोप है।
बुधवार, 29 अगस्त 2012
जमाइकन स्टाइल बेडरूम - डिजाइनर- अंजली गोयल वागीशा कंटेंट कंपनी
बेडरूम घर का वह कोना है, जहां दिन भर की थकान के बाद चैन की नींद सोना चाहते हैं हम सब। एक ही तरह की
सेटिंग, फैब्रिक, रंगों और फर्नीचर से हम कभी न कभी ऊबते हैं और चाहते हैं कि कुछ नया प्रयोग
करें। यदि आप भी अपने इस नितांत निजी कमरे को नया स्वरूप देना चाह रही हों तो
जमाइका स्टाइल को पसंदीदा स्टाइल में शामिल कीजिए। सवाल यह है कि क्या है जमाइका
स्टाइल?
एक खूबसूरत-सी जगह है जमाइका, जहां के राजसी महल संसार भर में मशहूर हैं। इन्हीं महलों से प्रेरित है जमाइकन
स्टाइल। सिल्वर वॉल कलर का प्रयोग किया गया है इसमें। वुड की एक खास किस्म पर
सिल्वर पेंट शाही रंगढंग से प्रेरित है तो ग्रे, सिल्वर, लाईलेक कलर्स का इस्तेमाल इसे राजसी रूप प्रदान करता है। ब्लू और डार्क कलर के
सिल्क-वेलवेट के फैब्रिक बेडरूम को शानदार लुक देते हैं। पिलोज और कुशंस के आकार
और एंब्रॉयडरी पर विशेष ध्यान दिया गया है। बेडसाइड टेबल भी स्टील फिनिशिंग वाली
है, जिनमें बेडस्प्रैड से मैच करते वासेज हैं। ब्लैक बैकग्राउंड पर पर्पल डिजाइन
वाला कारपेट फर्श को खूबसूरत बनाता है। अलग स्टाइल का शैंडेलियर कमरे को जीवंत बना
देता है।
7 टिप्स सजावट के
1. जमाइकन स्टाइल का अर्थ है बोल्ड कलर्स और मिनिमल फर्निशिंग। ड्रमेटिक क्रीम
लिनेन, डार्क फर्नीचर इसकी खूबी है। फर्नीचर सॉलिड वुड का हो तो अच्छा।
2. इस थीम के तहत गोल्डन,
पीला,
ऑरेंज,
पिंक,
लैवेंडर,
ब्लू कलर के अलावा ग्रीन के शेड्स ज्यादा इस्तेमाल किए जाते
हैं।
3. कारपेट से कमरे के एक हिस्से को ढके। बेडरूम का ज्यादातर हिस्सा खुला रहना
चाहिए।
4. बेडरूम की सीलिंग ज्यादा ऊंची है तो डार्क ब्लेड्स वाले सीलिंग फैन का प्रयोग
करें। बडी खिडकियों पर हैवी पर्दे लगाएं।
5. बेडरूम की वॉल पर ग्रीन के शेड प्रयोग करें।
6. जमाइकन थीम में फेंगशुई का भी खासा महत्व है। खास तौर पर दिशाओं का चयन बहुत
सावधानीपूर्वक किया जाता है।
7. वॉल्स पर ढेरों पेंटिंग्स,
फोटो फ्रेम्स के बजाय रंगों के संयोजन और पैटर्न पर ही
ज्यादा ध्यान देना चाहिए। लेकिन प्लांटर्स का प्रयोग बेडरूम में कर सकते हैं।
उसमें ताजे फूल लगाएं या फिर बाजार में मौजूद आकर्षक स्टिक्स।
शनिवार, 25 अगस्त 2012
यौन विकृतियों का नेपथ्य/ अशोक गुप्ता
न केवल भारत में बल्कि विश्व में बड़े
फलक पर, यौन संबंधों को
स्वीकृति केवल विवाह संस्था के जरिये मिलती है. इस स्वीकृति के बाहर यौन संबंधों
का होना अनैतिक और आपराधिक माना जाता है. यौन संबंध को तृप्ति से जोड़ कर देखना भले
ही परम्परागत मूल्यबोध का विषय न हो, लेकिन सामाजिक मनोविज्ञान इस ओर से मुहं नहीं मोड़ता और यह
एक स्थापित सत्य है कि अतृप्ति कारक यौन संबंध एक बेहद घिनौना और अमानवीय कृत्य
होता है और इससे विकृतियाँ उपजती हैं. यहाँ से इस खोज की ज़रूरत महसूस होती है कि
आखिर तृप्ति की उपज का केंद्र कहाँ है ?
पहली बात तो यह समझने की है कि यौन
संबंध केवल दैहिक क्रिया भर नहीं हैं, बल्कि इसमें स्त्री और पुरुष, दोनों के लिये, देह और मन का तादात्म्य बहुत ज़रूरी है. मन की भूमिका आते ही, मन की स्वीकृति का प्रश्न अपनी जगह बनाता है.
यह प्रश्न पारस्परिकता की ज़रूरत की ओर इशारा करता है. पारस्परिकता के अर्थों में, देह संबंध, तृप्ति के लिये स्त्री और पुरुष दोनो की निजता को एक धरातल
पर लाने की मांग करते हैं. सरल शब्दों में कहा जाय तो स्त्री और पुरुष के बीच अगर
दाता और याचक का संबंध हैं, दास और मालिक का
संबंध है, तो तृप्ति की
जगह नहीं बन सकती, क्योंकि यहाँ
तृप्ति की चर्चा किसी एक की निजी तृप्ति के संदर्भ में नहीं हो रही है, बल्कि पारस्परिक एकात्म के धरातल पर तृप्ति की
हो रही है. यह हुआ तो चरम सुख है, अन्यथा बर्बरता है, पशुता है और इसलिए अनाचार है.
अब देखें कि विवाह संस्था अपने विधान
में इस पारस्परिकता के लिये कितनी स्पेस छोड़ती है. विवाह दो व्यक्तियों का मेल है
या दो अनुकूल व्यक्तित्वों का, यह महत्वपूर्ण प्रश्न है क्योंकि अनुकूलन के बगैर
पारस्परिकता कहाँ संभव है ? व्यक्तित्वों के
अनुकूनल के साथ विधान का अनुकूलन भी अपनी भूमिका रचता है. क्या पारिवारिक व्यवस्था
का विधान अनुकूल व्यक्तित्वों को भी पारस्परिकता रच पाने में सहयोग करता है..? दो अपरिचित स्त्री पुरुष जब अचानक एक बंधन में
बाँध दिए जाते हैं, तो, अगर वह सौभाग्य से एक दूसरे के लिये अनुकूल भी
हैं, तब भी उनके बीच
संवाद का स्वतंत्र परिवेश तो होना चाहिए. जब देह संबंध की राह इस संवाद के एक घटक
के रूप में निकलती है, तो तृप्ति की
संभावना निश्चित रूप से घनी है. लेकिन भारतीय विवाह संस्था न तो अनुकूलन को एक
कसौटी मानती है, न उसकी व्यवस्था
में अनुकूलन उपजाने की कोई समुचित राह है. उसमें पति स्वामी है, लेकिन पत्नी के पिता उसके लिये भारी मूल्य अदा
करते हैं.. परिवार में पत्नी और पति के बीच अनेक वर्जनाएं हैं जो स्वतः उपजती
तृप्ति और आनंद को भी बेहयाई के खाते में दर्ज करती है. विशेष रूप से स्त्री की
आचार संहिता में इस बात के बीज गहराई से बोये जाते हैं कि उसके लिये अपना आनंद भाव, ज़ाहिर करना वर्जित है. पति पत्नी के बीच अपने
घर में भी, यहाँ तक कि अपने
अन्तःपुर में भी किलक कर मिलना हंसना अमार्यादित कहा जाता है. और इस बंदिश की गिरह
से पुरुष भी उतना ही बंधा होता है जितनी स्त्री. ऐसे में उनके बीच होने वाला देह
संबंध, प्रायः विवाह
संस्था द्वारा दिया हुआ एक बासी दूषित फल जैसा होता है. यह मनोविज्ञान सम्मत तथ्य
है कि देह संबंध के दौरान यदि तृप्ति और आनंद के संकेत एक दूसरे पर व्यक्त नहीं
होते, तो उस संबंध का
मूल अभीष्ट खंडित हो जाता है. उस से केवल वीभत्स उपजता है, चरम आनंद नहीं. जब कि दाम्पत्य धर्म की तरह
होने वाले वह देह संबंध अपने परिवेश और अनुशासन के चलते एक दैनन्दिनी से
अधिक नहीं ठहरते .कुल मिला कर विवाह संस्था प्रदत्त यौन संबंधों की स्वीकृति इतनी
रस्मी और निष्फल होती है जिससे केवल जैविक संतान तो उपज सकती है, तृप्ति और आनंद नहीं मिल सकता ( हालांकि इस
निष्कर्ष का सामान्यीकरण नहीं किया जा सकता.)
अतृप्ति के उपरोक्त कारण विकृति पैदा
करते हैं. विकृति के अनंत रूप हो सकते हैं. जैसे कोई यह पूछे कि दो और दो चार के
योगफल के कितने गलत उत्तर हो सकते हैं, तो उत्तर लगभग अनंत होगा क्योंकि सही उत्तर तो एक ही होगा, चार. बाकी सब गलत.
आनंदहीनता, कुंठा, अकेलापन, तिरस्कार भाव ( चाहे सचमुच का तिरस्कार या सत्कार के
अभाव का एहसास ) यह सब व्यक्ति को घोर अंतर्मुखी, संकल्पहीन और नदी में बहते हुए लकड़ी के लट्ठे सा निस्पंद भी
बना सकते हैं और घोर निर्मम क्रूर, जघन्य अपराधी भी. यहाँ एक सूक्ष्म सी बात यह समझी जा सकती
है, कि संवेदना
व्यक्ति को मानवीय बनाती है और संवेदना का संचार तृप्ति और आनंद से होता है. इस
नाते यह बात निर्मूल नहीं कही जा सकती कि घोर निर्मम क्रूर सा जघन्य अपराधी इसी
किसी विकृति का शिकार हो जिसके केन्द्र में अतृप्ति एक शिला बन कर बैठ गयी हो, या एक राक्षस बन कर.
ऐसे में स्त्रियां प्रायः शिला हो जाती
हैं और पुरुष दैत्य, या कुटिल छद्म
से लैस भेडिये.
तो, इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि अगर समाज स्त्री को यौन
शुचिता के आरोपित मूल्य से मुक्त कर दे, विवाह संस्था में प्रेम और सामंजस्य के लिये स्पेस बने तो
समाज में यौन अपराध कम हो सकते हैं. लेकिन अभी तो यह ही नहीं हो पाया है कि विवाह
के लिये साथी चुनने का अधिकार विवाह्य व्यक्तियों को मिले. चुनाव की कसौटी में
अनुकूलन की परख के मूल्य हों, और यह माना जाय की आनंद और तृप्ति के बगैर दाम्पत्य का
निर्वाह इतना दुष्कर है कि उसकी पीड़ा के आगे तृप्ति और आनंद भी अपनी वरीयता खो
देता है. फिर बचा ही क्या जीने के उत्साह के लिये...? केवल अंत की प्रतीक्षा, या यौन अपराधों के गलियारे में अनायास
पदार्पण... यह अंत समाज के लिये त्रासद है. भगवती चरण वर्मा के उपन्यास चित्रलेखा
पर बनी फिल्म में एक गीत की पंक्तियाँ है;
ये भोग भी एक
तपस्या है, तुम त्याग के
मारे क्या जानो...
पर यहाँ तो अंतर विरोध यह है कि भोग को
स्वीकृति देने वाली एक मात्र संस्था भोग का अधिकार पाए पात्रों को केवल त्याग की
ओर धकेलती है. मैं समझता हूँ कि यह तो सबसे बड़ा यौन अपराध है और सब यौन अपराधों का
उत्प्रेरक घटक...
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मोबाईल : 09871187875 e mail : ashok267@gmail.com
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शुक्रवार, 24 अगस्त 2012
बहुरानियां फंस रही हैं सेक्स के जाल में- वागीशा कंटेंट कंपनी
जल्द से जल्द अमीर बनने की चाहत में अच्छे परिवार की
बहुरानियां सेक्स के शिकंजे में फंस रही है। पश्चिमी उत्तरप्रदेशउत्तरतमीपनी उंगलियां पर नचाने वाला
एक गिरोह वेस्टर्न यूपी में आजकल सक्रिय है। गिरोह अपनी महिला एजेंटों के जरिए
बड़े घरों की महिलाओं को अपने जाल में फंसाता है।
पूरी तरह से उनके शिकंजे में आने के बाद वह उनका
शारीरिक शोषण शुरू कर देता है। अपने और परिवार की खातिर महिलाएं चुपचाप वह करती
हैं, जो गिरोह के लोग उनसे
कहते हैं। फिर इन्हीं महिलाओं को पैसे का लालच देकर उनके जरिए नए शिकार तलाश किए
जाते हैं।
एक बार इनके चंगुल में आने के बाद महिला चाहकर भी
बाहर नहीं निकल पातीं। पुलिस के एक आला अधिकारी का कहना है कि उन्हें भी इस मामले
की भनक लगी है, लेकिन शिकायत न मिलने
की वजह से इस मामले में कुछ नहीं कर पा रहे हैं। कैसे चलता है यह धंधा,
इस पर रोशनी डाल रहे हैं प्रेमदेव शर्मा।
किटी पार्टियों पर रहती है नजर
मेरठ की पॉश कालोनी में रहने वाले बड़े घरों की
महिलाओं और लड़कियों पर इस गिरोह की नजर रहती है। इस घिनौने काले कारोबार का शिकार
बन चुकी कविता (काल्पनिक नाम) का कहना है कि इस कारोबार को चलाने वाले लोगों ने
कुछ महिलाओं को भी एजेंट के रूप में अपने साथ रखा हुआ है। इन महिला एजेंटों की नजर
रईस परिवार की उन महिलाओं पर होती है, जो मौज मस्ती के लिए किटी पार्टी, क्लब और अन्य संस्थाओं में जाती है। पहले महिला एजेंट रईस परिवारों की ऐसी
महिलाओं का विश्वास जीतती है। फिर धीरे-धीरे उन्हें मुनाफे का लालच देकर शारीरिक
शोषण का शिकार बनाती हैं। इन्हें इन लोगों ने डिब्बा कारोबार का नाम दिया है।
थोड़ा पैसा, मोटा मुनाफा
कविता के अनुसार पॉश इलाकों की रईस महिलाएं लगभग हर
दूसरे-तीसरे दिन किसी न किसी होटल, रेस्टोरेंट, फॉर्म हाउस आदि में
किटी पार्टी के नाम पर इक_े होकर
मौज-मस्ती करती हैं। इसी में शामिल महिला एजेंट उन्हें एमसीएक्स और शेयर बाजारों
के 2 नंबर में संचालित
डिब्बा कारोबार में थोड़ा सा पैसा लगाकर मोटा मुनाफा कमाने का लालच देती हैं।
शुरू में बरसते हैं नोट
बड़े परिवारों की महिलाओं और लड़कियों पर शुरुआती
दौर में इस बिजनेस में खूब नोट बरसाए जाते हैं। जब इन महिलाओं को इस धंधे में
मुनाफा दिखता है तो वो अपने परिवार से छिपकर बिजनेस में ज्यादा पैसा लगाना शुरू कर
देती हैं।
फिर होता है तगड़ा घाटा
महिलाओं का डिब्बा कारोबार में ज्यादा पैसा लगने के
बाद इन्हें बिजनेस में भारी घाटा करवा दिया जाता है। गंवाया पैसा मुनाफे समेत वापस
पाने की लालच की शिकार महिलाएं देखते ही देखते लाखों की कर्जदार हो जाती हैं।
कर्जदार होने पर मध्यस्थ महिलाओं के माध्यम से ही कारोबारी किसी न किसी बहाने से
इन महिलाओं से कुछ कोरे कागजातों और स्टांप पेपर पर साइन करवा लेते हैं। महिलाओं
को शुरू में लाखों रुपये कर्ज के रूप में दे दिए जाते हैं।
गिरोह का असली खेल
यह सब कुछ होने के बाद शुरू होता है गिरोह का असली
खेल। लाखों रुपये की कर्जदार हो चुकी इन महिलाओं पर पैसा वापसी के लिए दबाव बनाया जाता
है। उनसे कहा जाता है कि वह पहले कर्ज उतारें, फिर कारोबार में पैसा लगाएं। कारोबारियों के तकादे और परिजनों की निगाह से
घाटे को छिपाने की जुगत में महिलाएं जहां-तहां से पैसों का बंदोबस्त करने में लग
जाती हैं। इसी दौरान इन महिलाओं को पैसा देने के नाम पर शहर के बाहरी इलाके में
बने होटलों में बुलाकर उनका शारीरिक शोषण किया जाता है। पुलिस का कहना है कि इस
संबंध में उन्हें भनक तो मिली है, लेकिन शिकायत न मिलने के कारण वह कुछ कर नहीं पा रहे हैं।
जुबान खोलने को तैयार नहीं
शिकंजे में फंसी महिलाएं इस गिरोह के हाथों में
कठपुतली बनकर नाच रही हैं, लेकिन
सामाजिकमर्यादा और परिवार के सामने शर्मसार होने से बचने के लिए वे जुबान खोलने को
तैयार नही हैं।उनकी यही कमजोरी गिरोह की ताकत बनी हुई है।
क्या है 'डिब्बा' कारोबार
एमसीएक्स के अवैध कारोबार को ही डिब्बा कारोबार कहते
हैं। एमसीएक्स यानी मल्टि कमॉडिटीएक्सचेंज 2 तरीके से संचालित किया जाता है। एक तो इसको सरकार से लाइसेंस शुदा लोगसंचालित
करते हैं, जिसमें इन कारोबारियों
को सारा कारोबार नंबर 1 में करना होता
है। इसी तरहशेयर बाजार में किए जाने कारोबार के लिए सेबी के नियमों का पालन करते हुए
लाइसेंस शुदाशेयर ब्रोकर काम करते हैं। लेकिन बाजार में अवैध तरीके से भी यह धंधा
संचालित किया जाताहै।
शेयर खरीदने के नाम पर बेनामी पैसा खरीद-फरोख्त में
लगाया जाता है, जिसमें सिर्फ
मुंहजबानी पैसा लगा दिया जाता है। हार-जीत होने पर पैसा घटता-बढ़ता रहता है। इसी
प्रकारसोना-चांदी, पीतल,
तांबा आदि में भी 2 नंबर में पैसा लगाया जाता है, जिसे एक नंबर में किएजाने पर वायदा कारोबार और 2 नंबर में किए जाने पर डिब्बा
कारोबार कहा जाता है। डिब्बाकारोबारी अधिकतर सोने-चांदी के दिन प्रतिदिन
घटते-बढ़ते दामों पर पैसा लगवाते हैं
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